मृत्यु भोज यानि किसी का निधन हो जाने के 11 या 13 दिन बाद समाज को दिया जाने वाला भोज। इस भाेज को हमेशा से बुरा माना गया, लेकिन सामाजिक रूढिय़ों के कारण लोग कर्ज लेकर भी इसे करते रहे हैं। लेकिन अब सामाजिक बदलाव आ रहा है और संपन्न लोग भी इससे किनारा कर इस भोज के लिए प्रस्तावित राशि को समाज के दूसरी जरूरतों पर खर्च कर रहे हैं।
मृत्यु भोज हिंदू समाज की परंपराओं में शामिल हैं। बुजुर्गों के निधन के बाद उनकी याद में समाज के साथ नाते रिश्तेदारों को दिया जाने वाला भोज अगर कोई नहीं करता तो समाज उसे कोसता है। लेकिन अब समाज में बदलाव नजर आने लगा है। लोग मृत्यु भोज से किनारा करने लगे हैं। इस पर होने वाले खर्च को या तो सामाजिक कार्यों में खर्च कर रहे हैं या फिर समाज के रचनात्मक कार्यों में ।
अपनों की याद में यह कर सकते
जरुरत मंद छात्र छात्राओं को शिष्यवृत्ति दे। ताकि उनके पढाई में उपयोग हो।
जरुरत मंद छात्र छात्राओं को शिष्यवृत्ति दे। ताकि उनके पढाई में उपयोग हो।
स्कूल में पंखे या बच्चों के काम आने वाली सामग्री अपनों की याद में दान करें ।
मृत्यु भोज पर खर्च होने वाली राशि से स्वास्थ्य शिविर लगा कर दु:खी लोगों की सहायता करें ।
समाज के जरूरतमंद परिवारों की मदद करें । उनके बच्चोंके विवाह में सहायता करे।
गांव या शहर में सामाजिक या सार्वजनिक रूप से जरुरी संसाधन उपलब्ध कराएं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें