मित्रों नमस्कार, माँ-बाप के द्वारा अपने बच्चे -बच्चियों का विवाह करने की धार्मिक परम्परा सदियों से चली आ रही है। चाहे परिवार संपन्न हो या गरीब, सब अपनी-अपनी सहूलियत के अनुसार विवाह करना अपना कृत्य समझकर निभाते आये है। परन्तु आज इस महंगाई के जमाने में अपनी बेटियों का विवाह करना कठिन समस्या होती जा रही है। बच्चियों को अच्छी शिक्षा दिलाना व शिक्षा के हिसाब से बच्चा ढूंढना, दहेज़ देना, फैशन के हिसाब से विवाह करना, लाखों रुपये खर्च करना कठिन होता जा रहा है। जब अपने बच्चे-बच्चियों अच्छी शिक्षा दिलाना व अपना पेट पालना मुश्किल हो रहा है तो विवाह में इन आडम्बरों के लिए खर्चा कहा से आएगा। इस दहेज़ व शादियों में फिजूलखर्ची आडम्बरों से बचने का एक रास्ता है -- "सामूहिक विवाह", जिसमे सारा झंझट मिट जाता है। न दहेज़ देने की चिंता और न टेंट, हलवाई नाना प्रकार के दिखावा की चिंता है।
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